shershah suri mugal ki kahani

भारत का वो बादशाह जिसके आगे झुक गये थे मुग़ल,नहीं मिली थी छुपने की जगह-देखे तस्वीरे

1540 से 1545 के बीच दिल्ली सल्तनत में एक अफगान शेरशाह सूरी का उरूज किसी करिश्मे से कम ना था। शेरशाह के पिता हरियाणा की छोटी सी जागीर नारनौल के जागीरदार थे। बचपन में उसका नाम फरीद खान था। एक शिकार के दौरान बिहार के मुगल गवर्नर बहार खान पर शेर ने हमला कर दिया था। नौजवान अफगान फरीद ने उस शेर को मार गिराया और उसे नया नाम मिला, ‘शेरशाह’. शेर शाह ने दिल्ली का तख़्त अपनी बदौलत हासिल किया था।

बिहार के लोगों के लिए तो शेरशाह का नाम बहादुरी का प्रतीक है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने कहा था कि मैं शेरशाह सूरी की तरह हूं, कम समय में मैंने भी बहुत काम कर लिए। नीतीश कुमार ने उनसे कई साल पहले ही कह दिया था कि शेरशाह सूरी मेरे आदर्श हैं। उनसे ही मुझे प्रेरणा मिलती है।

शेरशाह का जन्म 1486 के आस-पास बिहार के सासाराम में हुआ था। हालांकि इसके जन्म वर्ष और जगह दोनों को लेकर मतभेद है। कई जगह ये कहा जाता है कि शेरशाह का जन्म हिसार, हरियाणा में हुआ था। साल भी बदल जाता है। शेरशाह का नाम फरीद खान हुआ करता था। इनके पिताजी का नाम हसन खान था। हसन खान बहलोल लोदी के यहां काम करते थे। शेरशाह के दादा इब्राहिम खान सूरी नारनौल के जागीरदार हुआ करते थे। नारनौल में इब्राहिम का स्मारक भी बना है। ये लोग पश्तून अफगानी माने जाते थे। सूरी टाइटल इनके अपने समुदाय सुर से लिया गया था। ऐसा भी कहा जाता है कि इनके गांव सुर से ये टाइटल आता है। इतिहास की बात है, जब तक तीन-चार वर्जन नहीं रहते एक ही स्टोरी के, मजा नहीं आता।

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फरीद जब बड़ा हो रहा था, तभी उसने एक शेर मार डाला था। और इसी वजह से फरीद का नाम शेर खान पड़ गया। जहां शेर मारा था, उस जगह का नाम शेरघाटी पड़ गया। ये बातें भी कहानी हो सकती हैं। शेर खान के 8 भाई थे। सौतली माएं भी थीं। शेर खान की घर में बनी नहीं, क्योंकि वो महत्वाकांक्षी था। वो घर छोड़कर जौनपुर के गवर्नर जमाल खान की सर्विस में चला गया। वहां से फिर वो बिहार के गवर्नर बहार खान लोहानी के यहां चला गया। यहां पर शेर खान की ताकत और बुद्धि को पहचाना गया। बहार खान से अनबन होने पर शेर खान ने बाबर की सेना में काम करना शुरू कर दिया। वहीं पर उसने नई तकनीक सीखी थी जिसके दम पर बाबर ने 1526 में बहलोल लोदी के बेटे इब्राहिम लोदी और बाद में राणा सांगा को हराया था। यहां से निकलकर फिर वो बिहार का गवर्नर बन गया।

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एक वक्त था कि मगध साम्राज्य इतना विशाल था कि सिकंदर भी हमला करने से मुकर गया था। पर बाद में धीरे-धीरे पावर सेंटर दिल्ली की तरफ शिफ्ट होने लगा था। शेर खान ने जब बिहार की कमान संभाली तो कोई भी बिहार को पावर सेंटर मानने को तैयार नहीं था। शेर खान ने अपनी ताकत बढ़ानी शुरू कर दी. अपनी सेना तैयार करने लगा।

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