ये तस्वीरे 1911 की है जब डेहरी से रोहतास के बिच चलती थी ट्रेने,1984 से बंद है परिचालन
रोहतास जिले में डेहरी-रोहतास के बीच नैरो गेज वाली रेलवे लाइन संचालित हुआ करती थी. इसका नाम था डेहरी-रोहतास लाइट रेलवे (DRLR). इस रेल मार्ग का संचालन डेहरी रोहतास ट्रामवे कंपनी करती थी. ये रोहतास इंडस्ट्रीज की ही सहायक कंपनी थी. कंपनी ने अपनी औद्योगिक जरूरतों के लिए ये रेल मार्ग शुरू किया था, साथ ही इस मार्ग पर पैसेंजर ट्रेनों का भी संचालन होता था. यह रेल मार्ग डेहरी-ऑन-सोन से रोहतासगढ़ के किले की तरफ जाता था. इसका मार्ग सोन नदी के समानांतर था. सड़क के किनारे-किनारे इसकी पटरियां बिछाई गई थीं. यह 2 फीट 6 ईंच चौड़ाई वाली लाइट रेलवे थी.

1907 में आरंभ हुए इस रेल मार्ग को कोलकाता की द ओक्टावियस स्टील कंपनी ने शुरू किया था. कंपनी को मूल रूप से ठेका 40 किलोमीटर लंबी एक फीडर लाइन बनाने के लिए मिला था. यह रेल मार्ग रोहतासगढ़ से दिल्ली कोलकाता रेलमार्ग तक पहुंचने के लिए डेहरी-ऑन-सोन तक बनाया जाना था. बाद में ये ट्रामवे कंपनी लाइट रेलवे कंपनी में बदल गई. 4 जून 1909 को ओक्टावियस स्टील कंपनी और शाहाबाद जिला बोर्ड के बीच इस रेलवे लाइन को बिछाने के लिए आधिकारिक तौर पर करार हुआ.

बाद में इस कंपनी का अधिग्रहण रोहतास इंडस्ट्रीज ने कर लिया. इस कंपनी ने असम के बंद पड़ी दवारा थेरिया लाइट रेलवे की परिसंपत्तियों का अधिग्रहण कर लिया. रोहतास इंडस्ट्रीज डालमियानगर और आसपास के शहरों में कई तरह के औद्योगिक इकाइयां चलाती थी. इसमें सीमेंट, वनस्पति, एस्बेस्टस, पेपर और बोर्ड, वैल्केनाइज्ड फाइबर आदि प्रमुख थे. अपनी तमाम औद्योगिक जरूरतों को कच्चे माल की सप्लाई और तैयार माल को भेजने के लिए कंपनी इस रेल मार्ग पर ट्रेनों का परिचालन शुरू की थी. बाद में इसपर सवारी गाड़ी का भी परिचालन शुरू किया गया.

डेहरी-रोहतास रेलवे 1911 में हुई शुरूआत: डेहरी-रोहतास लाइट रेलवे (DRLR) पर यात्री गाड़ियों के संचालन की शुरूआत 1911 में हुई. 1913-14 में इस रेल मार्ग पर 50 हजार से ज्यादा सवारियां और 90 हजार टन से ज्यादा माल की ढुलाई की जा रही थी. इस लाइट रेलवे पर खास तौर पर रोहतास इंडस्ट्रीज की कच्चे मालों को कैमूर पहाड़ी से ढुलाई की जा रही थी. 1927 में डेहरी रोहतास लाइट रेलवे के 40 किलोमीटर मार्ग का विस्तार ढाई किलोमीटर बढ़ाकर रोहतास से रोहतास फोर्ट तक किया गया. वहीं रोहतास इंडस्ट्रीज के कारण इस लाइन का विस्तार 25 किलोमीटर और आगे तक हुआ. इस लाइन को तिउरा पीपराडीह तक बढ़ाया गया. इस तरह रेलमार्ग की कुल लंबाई 67.5 किलोमीटर हो गई.